उसकी इबादत से भला क्यों रहता अनजान उससे अपना दिल मिला ओ ! भोले इन्सान कोयल बैठी डाल पर मीठे गीत सुनाय दो प्रेमी के बीच वो मीठी हूक जगाय सच का दामन थाम कर जो भी करता चाह ऊपर वाला खुद उसे दिखला देता राह ग़ज़लों में डूबा रहूँ ऐसा कर कुछ काम शेर ही शेर मैं कहूँ भाई सुबहा शाम सामने मीठा बोलते पीछे कड़वा यार ऐसे लोगों के लिए कैसे खोलें द्वार कोयल कूके डाल पर कौवा बोले काँव दोनों समान दीखते इक सिर दूजा पाँव ऐसी रचना रच सनम सपने हों साकार जो जीवन में कर सके अपने कुछ उजियार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
उसकी इबादत से
उसकी इबादत से भला क्यों रहता अनजान
उससे अपना दिल मिला ओ ! भोले इन्सान
कोयल बैठी डाल पर मीठे गीत सुनाय
दो प्रेमी के बीच वो मीठी हूक जगाय
सच का दामन थाम कर जो भी करता चाह
ऊपर वाला खुद उसे दिखला देता राह
ग़ज़लों में डूबा रहूँ ऐसा कर कुछ काम
शेर ही शेर मैं कहूँ भाई सुबहा शाम
सामने मीठा बोलते पीछे कड़वा यार
ऐसे लोगों के लिए कैसे खोलें द्वार
कोयल कूके डाल पर कौवा बोले काँव
दोनों समान दीखते इक सिर दूजा पाँव
ऐसी रचना रच सनम सपने हों साकार
जो जीवन में कर सके अपने कुछ उजियार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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