उड रहे गुलाल और अबीर,
जश्न जीत का हो रहा है ।
कोई हारा कोई जीत गया,
लोकतंत्र का शंखनाद हो रहा।
ओने-पोने दाम बिक गए जो,
लोकतंत्र को छलनी कर रहे।
दल-बदलूओ की स्वार्थ लोलूपता,
राजनिति को मैली कर रहै ।
जनता भी अपना मत बदल देती
देखकर सियासी कुचालो को ।
भ्रष्ट नेताओ की झोली भर देती,
देकर अपना वोट निक्कमो को ।
क्या जनता, क्या राजनेता, दोनो,
एक-दूजे के हाथो बिक रहे है।
भ्रष्टाचार की ओड़ चादर, दोनो,
अपना-अपना ईमान बेच रहे है।
उड रहे गुलाल और अबीर
उड रहे गुलाल और अबीर,
जश्न जीत का हो रहा है ।
कोई हारा कोई जीत गया,
लोकतंत्र का शंखनाद हो रहा।
ओने-पोने दाम बिक गए जो,
लोकतंत्र को छलनी कर रहे।
दल-बदलूओ की स्वार्थ लोलूपता,
राजनिति को मैली कर रहै ।
जनता भी अपना मत बदल देती
देखकर सियासी कुचालो को ।
भ्रष्ट नेताओ की झोली भर देती,
देकर अपना वोट निक्कमो को ।
क्या जनता, क्या राजनेता, दोनो,
एक-दूजे के हाथो बिक रहे है।
भ्रष्टाचार की ओड़ चादर, दोनो,
अपना-अपना ईमान बेच रहे है।
– हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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