भूल गए राह श्याम, जपती है साँस नाम। विरह व्यथा गई चीर, हरो नाथ विकट पीर।। बंशी की लुप्त तान, यमुना का मंद गान। गाय ग्वाल भी उदास, छोड़ रही साथ आस।। बैर साध रहे आप, समझ रहे नहीं ताप। हमें घेर खड़ा काल, कष्ट रहे नहीं टाल।। नयनों से बहे धार, कहती तुमको पुकार। दर्शन की जगी प्यास, दीजिये न और त्रास।। –अवधेश कुमार ‘रजत’ अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जीवन पर व्यंग
भूल गए राह श्याम,
जपती है साँस नाम।
विरह व्यथा गई चीर,
हरो नाथ विकट पीर।।
बंशी की लुप्त तान,
यमुना का मंद गान।
गाय ग्वाल भी उदास,
छोड़ रही साथ आस।।
बैर साध रहे आप,
समझ रहे नहीं ताप।
हमें घेर खड़ा काल,
कष्ट रहे नहीं टाल।।
नयनों से बहे धार,
कहती तुमको पुकार।
दर्शन की जगी प्यास,
दीजिये न और त्रास।।
–अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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