हमारे स्वप्न भी उच्छृंखल हो गए हैं कभी ये नींद उड़ा देते हैं, कभी जागते में कहीं ले जाते हैं बैठ कर हवा के रेशमी परों पर देखता हूँ माटी का गेरूआ रंग बौराए आम की घनी छाँव मे ठहर जाता है वक्त किसी पलक भूल जाती है अपना झपकना उन्मुक्त स्वाँसों की महक उठती है निशिगंध – रामनारायण सोनी रामनारायण सोनी जी की कविता रामनारायण सोनी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
स्वप्न की निशिगन्ध
हमारे स्वप्न भी
उच्छृंखल हो गए हैं
कभी ये नींद उड़ा देते हैं,
कभी जागते में कहीं ले जाते हैं
बैठ कर हवा के रेशमी परों पर
देखता हूँ माटी का गेरूआ रंग
बौराए आम की घनी छाँव मे
ठहर जाता है वक्त किसी
पलक भूल जाती है
अपना झपकना
उन्मुक्त स्वाँसों की
महक उठती है निशिगंध
– रामनारायण सोनी
रामनारायण सोनी जी की कविता
रामनारायण सोनी जी की रचनाएँ
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