सुबहा चहुँ दिश हँस रही, भाग गई सब रात नयनों से जब गया, वो इस दिल की बात उसकी आँखों में पढ़ा मैने जब वो खूवाब मुझको उतारना पड़ा चेहरे से नकाब सपनों ने आकाश में जब जब छिड़का रंग मेरे घर बजने लगा फागुन वाला चंग हँसते हँसते कह रही, देख! बसन्त बहार अब घर आजा साजना खुले हुए हैं द्वार नयना तू मटकाय के हिय मेरा भटकाय सारा जग देखत सनम! लाज तोहे न आय बातें कुछ ऐसी करें पार लगा दे नाव ऐसी बातें क्यों करें जो करती हों घाव जब नयनों में झाँक कर अपनों ने की बात सपने सब हँसने लगे बदल गये हालात – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की कविता जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सुबहा चहुँ दिश हँस रही,
सुबहा चहुँ दिश हँस रही, भाग गई सब रात
नयनों से जब गया, वो इस दिल की बात
उसकी आँखों में पढ़ा मैने जब वो खूवाब
मुझको उतारना पड़ा चेहरे से नकाब
सपनों ने आकाश में जब जब छिड़का रंग
मेरे घर बजने लगा फागुन वाला चंग
हँसते हँसते कह रही, देख! बसन्त बहार
अब घर आजा साजना खुले हुए हैं द्वार
नयना तू मटकाय के हिय मेरा भटकाय
सारा जग देखत सनम! लाज तोहे न आय
बातें कुछ ऐसी करें पार लगा दे नाव
ऐसी बातें क्यों करें जो करती हों घाव
जब नयनों में झाँक कर अपनों ने की बात
सपने सब हँसने लगे बदल गये हालात
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की कविता
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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