श्याम-वर्ण मेरा, पर मन उजला था, तेरे श्वेत तन मे, बैठा एक मन घोर काला था। रूप-रंग, जोबन और यह माटी की काया, अज्ञानी, दूराचारी, पापी मन यह कब समझ पाया। नारी का सौन्दर्य, उसका आचरण-व्यहार है, मृदुल व स्नेह की डोर से बाँधती घर-संसार है। काम-वासना से दुषित, नर देह से रखता नाता है, हर पल अपमानित कर, उसे रोज सताता है ऐसे पापियों के आगे, कहाँ बेटियाँ रह पाती है, सर्प-दंश का झुठा बहाना कर, मौत के घाट उतारी जाती है। – हेमलता पालीवाल ‘हेमा’ हेमलता पालीवाल जी द्वारा रचित हिंदी कविता [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
श्याम-वर्ण मेरा
श्याम-वर्ण मेरा, पर मन उजला था,
तेरे श्वेत तन मे, बैठा एक मन घोर काला था।
रूप-रंग, जोबन और यह माटी की काया,
अज्ञानी, दूराचारी, पापी मन यह कब समझ पाया।
नारी का सौन्दर्य, उसका आचरण-व्यहार है,
मृदुल व स्नेह की डोर से बाँधती घर-संसार है।
काम-वासना से दुषित, नर देह से रखता नाता है,
हर पल अपमानित कर, उसे रोज सताता है
ऐसे पापियों के आगे, कहाँ बेटियाँ रह पाती है,
सर्प-दंश का झुठा बहाना कर, मौत के घाट उतारी जाती है।
– हेमलता पालीवाल ‘हेमा’
हेमलता पालीवाल जी द्वारा रचित हिंदी कविता
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