सतरंगी धरती पर फैली कितनी राह अजानी, एक फूल के खातिर कितनी कितनी बनी कहानी || चित्र बनाती रही रात भर गन्ध पवन की लेकर, तेरी सुधियों की बरसाती ताल तलैया छूकर | पूरव की खिड़की से झाँके जब चाँदिनी सयानी, एक फूल की खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी || मैंने तो तुमसे बस केवल एक फूल माँगा था, तुमने शतशत काटों में मुझको उलझा डाला था | विखर गये हैं सारे सपने यह कैसी मनमानी, एक फूल की खातिर कितनी कितनी बनी कहानी || सारा दिन उलझन में बीता, छितराये सब सपने, भरी दुपहरी आग उगलती सब लगते बेगाने | तपते सूरज की आखों का सूख गया है पानी, एक फूल की खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी || लोग न जाने क्या-क्या कहते सबकी बात निराली, नागफनी सी चुभती है रजनीगन्धा शेफाली || बैठ तितलियों के पंखों पर क्या करने की ठानी, एक फूल के खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सतरंगी धरती पर फैली
सतरंगी धरती पर फैली कितनी राह अजानी,
एक फूल के खातिर कितनी कितनी बनी कहानी ||
चित्र बनाती रही रात भर गन्ध पवन की लेकर,
तेरी सुधियों की बरसाती ताल तलैया छूकर |
पूरव की खिड़की से झाँके जब चाँदिनी सयानी,
एक फूल की खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी ||
मैंने तो तुमसे बस केवल एक फूल माँगा था,
तुमने शतशत काटों में मुझको उलझा डाला था |
विखर गये हैं सारे सपने यह कैसी मनमानी,
एक फूल की खातिर कितनी कितनी बनी कहानी ||
सारा दिन उलझन में बीता, छितराये सब सपने,
भरी दुपहरी आग उगलती सब लगते बेगाने |
तपते सूरज की आखों का सूख गया है पानी,
एक फूल की खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी ||
लोग न जाने क्या-क्या कहते सबकी बात निराली,
नागफनी सी चुभती है रजनीगन्धा शेफाली ||
बैठ तितलियों के पंखों पर क्या करने की ठानी,
एक फूल के खातिर कितनी-कितनी बनी कहानी ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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