सपनों को आकाश दे, रिश्तों को नव-सांस मीत! कभी टूटे नहीं, अपनों का विश्वास महंगाई हर दुवार पर चला रही तलवार हर व्यक्ति घायल हुआ, खाकर इसकी मार पल दो पल की ज़िन्दगी ओ! भोले इन्सान कल का तुझे पता नहीं जोड़ रहा सामान कुछ भी तो ना कर सका मैं उसका सत्कार मुझको जो करता रहा सच्चे दिल से प्यार सोच समझकर बोलना बहुत बड़ी है बात पास रखे जो यह कला कभी न खाये मात एक इशारा कर गया नींद न आयी रात नयन खोजते अब उसे किसे कहूँ ये बात शब्दों के बाजार में ये कैसी हुड़दंग दोहे ढोल रहे गीत बजायें चंग – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के दोहे जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सपनों को आकाश दे,
सपनों को आकाश दे, रिश्तों को नव-सांस
मीत! कभी टूटे नहीं, अपनों का विश्वास
महंगाई हर दुवार पर चला रही तलवार
हर व्यक्ति घायल हुआ, खाकर इसकी मार
पल दो पल की ज़िन्दगी ओ! भोले इन्सान
कल का तुझे पता नहीं जोड़ रहा सामान
कुछ भी तो ना कर सका मैं उसका सत्कार
मुझको जो करता रहा सच्चे दिल से प्यार
सोच समझकर बोलना बहुत बड़ी है बात
पास रखे जो यह कला कभी न खाये मात
एक इशारा कर गया नींद न आयी रात
नयन खोजते अब उसे किसे कहूँ ये बात
शब्दों के बाजार में ये कैसी हुड़दंग
दोहे ढोल रहे गीत बजायें चंग
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के दोहे
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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