सम्बन्धों के द्वार पर खेल प्रेम का खेल खुद-ब-खुद विश्वास की उग जायेगी बेल मन पंछी आकाश में भरने लगा उड़ान सपनों का आकाश में बनने लगा मकान मन के हारे हार है मन के जीते जीत अपनों से कुछ दिल लगा अपनों से कर प्रीत तेरे मेरे बीच में ये कैसा सम्बन्ध याद करूं जब भी तुझे रच जाये नव-छन्द बहती नदिया का अलग अपना होता रंग भाई उससे सीख ले कुछ जीने का ढंग आते जाते देखता कर न सका कुछ बात दिल में दब कर रह गये दिल के सब जज़्बात गली गली में हो रही तेरी मेरी बात राज़ सभी जब खुल गया क्यों न रहें फिर साथ – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सम्बन्धों के द्वार पर
सम्बन्धों के द्वार पर खेल प्रेम का खेल
खुद-ब-खुद विश्वास की उग जायेगी बेल
मन पंछी आकाश में भरने लगा उड़ान
सपनों का आकाश में बनने लगा मकान
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
अपनों से कुछ दिल लगा अपनों से कर प्रीत
तेरे मेरे बीच में ये कैसा सम्बन्ध
याद करूं जब भी तुझे रच जाये नव-छन्द
बहती नदिया का अलग अपना होता रंग
भाई उससे सीख ले कुछ जीने का ढंग
आते जाते देखता कर न सका कुछ बात
दिल में दब कर रह गये दिल के सब जज़्बात
गली गली में हो रही तेरी मेरी बात
राज़ सभी जब खुल गया क्यों न रहें फिर साथ
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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