साधों की देहरी कुआँरी अन छूई है, सपनों की साँस इसे नाँप जाती है | अनचाहे मौसम का तीखापन छूट रहा, रेंग रेंग उम्र चली पोर पोर टूट रहा | बनजारे नैनो के पाव डगमगाये जब, सोन जुही चंपकली काँप-काँप जाती है | साधो की टेहरी………… मौसमी हवावों से पीपल लहरा रहा, जाने क्या बात हुयी सागर घबरा रहा | खुले हुये वातायन परछाई लाघते, पसरी चट्टान यहाँ हाँफ-हाँफ जाती है | साधो की टेहरी कुआँरी……….. बरबस जाने कैसे चन्दन वन महक गया, सुधियों के पंछी का घायल मन बहक गया, आवारा बादल ने चाँद को समेट लिया, चकई झरोखे से ताक-ताक जाती है | साधों की देहरी कुआरी……….. – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
साधों की देहरी
साधों की देहरी कुआँरी अन छूई है,
सपनों की साँस इसे नाँप जाती है |
अनचाहे मौसम का तीखापन छूट रहा,
रेंग रेंग उम्र चली पोर पोर टूट रहा |
बनजारे नैनो के पाव डगमगाये जब,
सोन जुही चंपकली काँप-काँप जाती है |
साधो की टेहरी…………
मौसमी हवावों से पीपल लहरा रहा,
जाने क्या बात हुयी सागर घबरा रहा |
खुले हुये वातायन परछाई लाघते,
पसरी चट्टान यहाँ हाँफ-हाँफ जाती है |
साधो की टेहरी कुआँरी………..
बरबस जाने कैसे चन्दन वन महक गया,
सुधियों के पंछी का घायल मन बहक गया,
आवारा बादल ने चाँद को समेट लिया,
चकई झरोखे से ताक-ताक जाती है |
साधों की देहरी कुआरी………..
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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