उम्र का तकाजा भी न रहा, अपने ओहदे का लिहाज न रहा। देखे पराई नार छुप-छुपकर वो, क्या तुझे खुदा का खौंफ भी न रहा। औरत कोई जिस्म का खिलौना नही, वासना व कामुकता का पिटारा नही। कमनीय नजर से तु दीदार न कर, तेरी दृष्टी मे वो लज्जो-हया नही। खुदा की रची सुन्दर तस्वीर है वो, उसकी इबादत सुबह-शाम कर ले। पाकीजा नजर उठाकर उस पर उसके सदके का मान रख ले । पाकीजा नजर हो पास अगर तो पराई बेटी मे भी अपनी नजर आती है। कुदृष्टी वालो को तो, अपनी बेटी मे भी, वासना नजर आती है । लिखना पडता है उन हैवानो पर, जो रावण से भी बढकर हरकत करते है। उम्र का भुल तकाजा वो निर्लज्ज, पराई नार ताकते रहते है । नजरे अपनी अब पाकीजा कर लो, ताँक-झाँक से अब तौबा कर लो वरना ” हेमा” की हूँकार भर उठेगी, फिर कभी बंद पलके ऊपर न उठेगी। नारी का सम्मान जो न करते कभी जग मे यश वो पा सकते वे कभी । हर नारी ” निर्भया”, सी नही होती, दूर्गा का अवतरण ले लेती वो कभी। – हेमलता पालीवाल ” हेमा” हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की पाकीजा नजर कहाँ पर कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
उम्र का तकाजा भी न रहा
उम्र का तकाजा भी न रहा, अपने ओहदे का लिहाज न रहा।
देखे पराई नार छुप-छुपकर वो, क्या तुझे खुदा का खौंफ भी न रहा।
औरत कोई जिस्म का खिलौना नही, वासना व कामुकता का पिटारा नही।
कमनीय नजर से तु दीदार न कर, तेरी दृष्टी मे वो लज्जो-हया नही।
खुदा की रची सुन्दर तस्वीर है वो, उसकी इबादत सुबह-शाम कर ले।
पाकीजा नजर उठाकर उस पर उसके सदके का मान रख ले ।
पाकीजा नजर हो पास अगर तो पराई बेटी मे भी अपनी नजर आती है।
कुदृष्टी वालो को तो, अपनी बेटी मे भी, वासना नजर आती है ।
लिखना पडता है उन हैवानो पर, जो रावण से भी बढकर हरकत करते है।
उम्र का भुल तकाजा वो निर्लज्ज, पराई नार ताकते रहते है ।
नजरे अपनी अब पाकीजा कर लो, ताँक-झाँक से अब तौबा कर लो
वरना ” हेमा” की हूँकार भर उठेगी, फिर कभी बंद पलके ऊपर न उठेगी।
नारी का सम्मान जो न करते कभी जग मे यश वो पा सकते वे कभी ।
हर नारी ” निर्भया”, सी नही होती, दूर्गा का अवतरण ले लेती वो कभी।
– हेमलता पालीवाल ” हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की पाकीजा नजर कहाँ पर कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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