मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ
पतझारों में मधुश्रतु का संगीत सुनाता हूँ |
पाषाणों की छाती में सोई सी प्रेम कहानी कहता,
खण्डहरों की व्यथा भरी अनदेखी विगत जवानी कहता,
बरबस आखों के मोती जब धरती पर उग-उग आते हैं,
सपनों के संसार सलोने रजनी भर जगते रहते हैं |
छलक उठे सुनी आखों की शाश्वत रीति सुनाता हूँ,
मैं जीवन के नव-प्रभात का गीत सुनाता हूँ |
अब न कभी नीलम कलम हो ऐसा कुछ करना होगा,
मानव-मानव की दूरी मिट जाये यह कहना होगा |
बरबस मृग तृष्णा के पीछे जीवन सदा सुलगता है,
अनजाने सन्दर्भो में ही मानव सदा सिसकता है |
नील गगन के चिर मानस की रीति सुनाता हूँ,
मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ |
वनजारे नैनों का जब इतिहास बदलता है
पतझर में मधुरितु का जब उल्लास बदलता है
घायल पंछी पंख पसारे परवश वन जब हाफ रहा हो
बन्द किवाड़ों के भीतर देवता अनवरत काँप रहा हो
संघर्षो से जूझे ऐसा गीत सुनाता हूँ |
मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ ||
मैं जीवन के नव प्रभात
मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ
पतझारों में मधुश्रतु का संगीत सुनाता हूँ |
पाषाणों की छाती में सोई सी प्रेम कहानी कहता,
खण्डहरों की व्यथा भरी अनदेखी विगत जवानी कहता,
बरबस आखों के मोती जब धरती पर उग-उग आते हैं,
सपनों के संसार सलोने रजनी भर जगते रहते हैं |
छलक उठे सुनी आखों की शाश्वत रीति सुनाता हूँ,
मैं जीवन के नव-प्रभात का गीत सुनाता हूँ |
अब न कभी नीलम कलम हो ऐसा कुछ करना होगा,
मानव-मानव की दूरी मिट जाये यह कहना होगा |
बरबस मृग तृष्णा के पीछे जीवन सदा सुलगता है,
अनजाने सन्दर्भो में ही मानव सदा सिसकता है |
नील गगन के चिर मानस की रीति सुनाता हूँ,
मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ |
वनजारे नैनों का जब इतिहास बदलता है
पतझर में मधुरितु का जब उल्लास बदलता है
घायल पंछी पंख पसारे परवश वन जब हाफ रहा हो
बन्द किवाड़ों के भीतर देवता अनवरत काँप रहा हो
संघर्षो से जूझे ऐसा गीत सुनाता हूँ |
मैं जीवन के नव प्रभात का गीत सुनाता हूँ ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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