मन को उससे जोड़ ले मन को कर न अधीर मन जो हुआ अधीर तो बढ़ जायेगी पीर मन ही मन मुस्का रहा काहे मनवा आज शायद साजन आ रहा समझ गया हिय राज मन किसकी है मानता मन पर किसका जोर मन है चंचल बाँवरा बांध न इससे डोर मन की तू मत बात कर मन का कहीं न पार मन जो थोड़ा अड़ गया समझो बन्टा डार मन तो मन की पीर है मन तो है शमशीर मन जिस पर भी आ गया समझो उसकी खीर मन भटका तो समझ लो भटक गयी तकदीर मनवा ही चलवा रहा देख यहाँ शमशीर मन से मन की बात कर मत कर मन से घाट मन जो तेरा हो गया कभी न होगी रात – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मन को उससे जोड़ ले
मन को उससे जोड़ ले मन को कर न अधीर
मन जो हुआ अधीर तो बढ़ जायेगी पीर
मन ही मन मुस्का रहा काहे मनवा आज
शायद साजन आ रहा समझ गया हिय राज
मन किसकी है मानता मन पर किसका जोर
मन है चंचल बाँवरा बांध न इससे डोर
मन की तू मत बात कर मन का कहीं न पार
मन जो थोड़ा अड़ गया समझो बन्टा डार
मन तो मन की पीर है मन तो है शमशीर
मन जिस पर भी आ गया समझो उसकी खीर
मन भटका तो समझ लो भटक गयी तकदीर
मनवा ही चलवा रहा देख यहाँ शमशीर
मन से मन की बात कर मत कर मन से घाट
मन जो तेरा हो गया कभी न होगी रात
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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