माँ आँगन की धूप है, माँ आँगन की छाँव माँ ही तो खेती सनम! घर आँगन की नाव कैसे कैसे दुःख सहे, माने कभी न हार माँ की ममता का नहीं, भाई कोई पार यादें माँ की आज भी, डाले एक पड़ाव ममता के अहसास का, जिसमें बहे बहाव माँ है तो संवेदना, जीवित है घर-द्वार माँ के करण ही लगे, ये घर घर संसार जिस घर मे भी माँ हँसै,वो घर सरग समान चल भाई उस घर चलें, वहीं मिलेगा मान – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मातृ दिवस पर माँ पर चन्द दोहे
माँ आँगन की धूप है, माँ आँगन की छाँव
माँ ही तो खेती सनम! घर आँगन की नाव
कैसे कैसे दुःख सहे, माने कभी न हार
माँ की ममता का नहीं, भाई कोई पार
यादें माँ की आज भी, डाले एक पड़ाव
ममता के अहसास का, जिसमें बहे बहाव
माँ है तो संवेदना, जीवित है घर-द्वार
माँ के करण ही लगे, ये घर घर संसार
जिस घर मे भी माँ हँसै,वो घर सरग समान
चल भाई उस घर चलें, वहीं मिलेगा मान
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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