अभी तो
लंका दहन भी शेष है
पहले इसको होना है
हनुमान की
बढ़ती हुई पूँछ को
किरासिन तेल, डीजल और
घी से भिंगोना है
यार कपड़े की भी
कमी का रोना है
खतरे के डर से
पहले ही से बिजली का
मेन स्विच आफ है
जलती आग बुझने न पाये
आसमान भी साफ है
पाँच-छ: दिन पहले
रावण ने
राम की सीता भी चुरा ली है
लंका दहन की
सारी भूमिका बना ली है
वैसे इस साल के
कैलेण्डर में
विजयादशमी का
कोई प्रोग्राम नहीं है
क्योंकि
रावण तो घर-घर मिला
तलाशा जारी है
लेकिन रह गया
राम के न मिलने का गिला
अभी तो लंका दहन भी शेष है
अभी तो
लंका दहन भी शेष है
पहले इसको होना है
हनुमान की
बढ़ती हुई पूँछ को
किरासिन तेल, डीजल और
घी से भिंगोना है
यार कपड़े की भी
कमी का रोना है
खतरे के डर से
पहले ही से बिजली का
मेन स्विच आफ है
जलती आग बुझने न पाये
आसमान भी साफ है
पाँच-छ: दिन पहले
रावण ने
राम की सीता भी चुरा ली है
लंका दहन की
सारी भूमिका बना ली है
वैसे इस साल के
कैलेण्डर में
विजयादशमी का
कोई प्रोग्राम नहीं है
क्योंकि
रावण तो घर-घर मिला
तलाशा जारी है
लेकिन रह गया
राम के न मिलने का गिला
–गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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