कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर आज अपनों को दग़ा दे इस तरह वो देख उड़ना चाहता है आसमाँ पर हो गये कमजोर देखो किस तरह वो तीर भी लगता नहीं जिनसे निशाँ पर जो कभी सूखी पड़ी थी देख लो अब वो नदी कैसी यहाँ अपने रवाँ पर रौशनी की राह जो दिखला रहे थे जा रहे वो आज देखो ख़ुद कहाँ पर जानते हैं क़त्ल उसने ही किया है कौन लाये बात ये अपनी ज़ुबाँ पर अब बचेगा या नहीं “जगदीश” मुज़रिम देख निर्भर है ये सब तेरे बयाँ पर – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर
कौन किसकी मानता है अब यहाँ पर
वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर
आज अपनों को दग़ा दे इस तरह वो
देख उड़ना चाहता है आसमाँ पर
हो गये कमजोर देखो किस तरह वो
तीर भी लगता नहीं जिनसे निशाँ पर
जो कभी सूखी पड़ी थी देख लो अब
वो नदी कैसी यहाँ अपने रवाँ पर
रौशनी की राह जो दिखला रहे थे
जा रहे वो आज देखो ख़ुद कहाँ पर
जानते हैं क़त्ल उसने ही किया है
कौन लाये बात ये अपनी ज़ुबाँ पर
अब बचेगा या नहीं “जगदीश” मुज़रिम
देख निर्भर है ये सब तेरे बयाँ पर
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
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