हरिक साया जलाने सा रहा । और वादा बहाने सा रहा । तोड़ कर वो भरोसा यूँ गया, शक्ल अब ना दिखाने सा रहा । आपकी उस मुहब्बत का सिला, बस तमाशा दिखाने सा रहा । बे वफ़ा के लिये हर राबता, एक परदा गिराने सा रहा । चोट ऐसी जगह दे के गया, ज़ख़्म फिर ना दिखाने सा रहा । वो समन्दर सा होकर भी सदा, सिर्फ़ लहरें उठाने सा रहा । हम निभाएं खुलूसे बन्दगी, तौर उनका ज़माने सा रहा । दौर आया तुम्हारा यूँ लगे, दौ अपना न आने सा रहा । – इक़बाल हुसैन ‘इक़बाल’ इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की कविता इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हरिक साया जलाने सा रहा
हरिक साया जलाने सा रहा ।
और वादा बहाने सा रहा ।
तोड़ कर वो भरोसा यूँ गया,
शक्ल अब ना दिखाने सा रहा ।
आपकी उस मुहब्बत का सिला,
बस तमाशा दिखाने सा रहा ।
बे वफ़ा के लिये हर राबता,
एक परदा गिराने सा रहा ।
चोट ऐसी जगह दे के गया,
ज़ख़्म फिर ना दिखाने सा रहा ।
वो समन्दर सा होकर भी सदा,
सिर्फ़ लहरें उठाने सा रहा ।
हम निभाएं खुलूसे बन्दगी,
तौर उनका ज़माने सा रहा ।
दौर आया तुम्हारा यूँ लगे,
दौ अपना न आने सा रहा ।
– इक़बाल हुसैन ‘इक़बाल’
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की कविता
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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