हार कभी ना मानना होना नहीं अधीर कर्म से मुख न मोड़ना बदलेगी तकदीर तुम जो मुझको साथ दो कर दें सबको मात और भगा दें हम सनम ! जग से काली रात जिसको रखना साथ हो पहले कर पहचान ऐसा ना हो बाद में तुझे करे हैरान सत्राटा तोड़ो सनम ! थामो हाथ कमान रखनी है पहचान तो ऊँची भरो उड़ान अपने दूर क्यों हो रहे कारण जानो मूल पता लगाओ तुम सनम ! कहाँ हो रही भूल देख दवार पर हँस रहा सूरज का उजियार बगिया में लगने लगा फूलों का दरबार अनुभव के जो ताल में डुबकी लेता मार मात नहीं खाता कभी जग में वो फ़नकार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हार कभी ना मानना
हार कभी ना मानना होना नहीं अधीर
कर्म से मुख न मोड़ना बदलेगी तकदीर
तुम जो मुझको साथ दो कर दें सबको मात
और भगा दें हम सनम ! जग से काली रात
जिसको रखना साथ हो पहले कर पहचान
ऐसा ना हो बाद में तुझे करे हैरान
सत्राटा तोड़ो सनम ! थामो हाथ कमान
रखनी है पहचान तो ऊँची भरो उड़ान
अपने दूर क्यों हो रहे कारण जानो मूल
पता लगाओ तुम सनम ! कहाँ हो रही भूल
देख दवार पर हँस रहा सूरज का उजियार
बगिया में लगने लगा फूलों का दरबार
अनुभव के जो ताल में डुबकी लेता मार
मात नहीं खाता कभी जग में वो फ़नकार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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