रस्में वफ़ा हम ही निबाहते रहें क्या । ये हर दफा तुमको दिखाते रहें क्या । उनको पता है सब उदासी हमारी, दिल में जफ़ा उनकी छुपाते रहें क्या । तुम भी ज़रा कोशिश करो तो वफ़ा की ये फ़लसफ़ा हम ही पढ़ाते रहें क्या । कब दूर की बोलो शिक़ायत दर्द की, होकर ख़फ़ा जीवन बिताते रहें क्या । हर रोज़ का रोना मुनासिब नहीं है, हो बेवफ़ा किस्सा सुनाते रहें क्या । हिम्मत रखो खुलकर बतादो अभी तुम, कह दो सफा नख़रे उठाते रहें क्या । –इक़बाल हुसैन इक़बाल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
रस्में वफ़ा हम ही निबाहते रहें क्या
रस्में वफ़ा हम ही निबाहते रहें क्या ।
ये हर दफा तुमको दिखाते रहें क्या ।
उनको पता है सब उदासी हमारी,
दिल में जफ़ा उनकी छुपाते रहें क्या ।
तुम भी ज़रा कोशिश करो तो वफ़ा की
ये फ़लसफ़ा हम ही पढ़ाते रहें क्या ।
कब दूर की बोलो शिक़ायत दर्द की,
होकर ख़फ़ा जीवन बिताते रहें क्या ।
हर रोज़ का रोना मुनासिब नहीं है,
हो बेवफ़ा किस्सा सुनाते रहें क्या ।
हिम्मत रखो खुलकर बतादो अभी तुम,
कह दो सफा नख़रे उठाते रहें क्या ।
–इक़बाल हुसैन इक़बाल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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