मेरे देश की आजादी,
अद्धभुखी, प्यासी।
निढाल, थकी सी।
पेट के खातिर बेच रही,
हाथो में ले तिरंगा।
नही जानती तिरंगे को,
जश्न आजादी देश
मना रहा।
72वें वर्ष की आजादी,
चिथड़ों में लपेटा तन,
नंगे पैर दौड़ रही है।
खुले आसमान की छत,
सड़क बन गई बिछौना।
चंद तिरंगे बेच रही,
उसके लिए आजादी का,
सिर्फ यही मायने है।
नन्है हाथो को भी फिक्र है,
पेट का यही एक जुगाड़ है।
सौ साल बाद भी अगर,
इसी तरह हाथो मे तिरंगे को,
लहराने के बजाय, बेचना है,
तो अभी भी जश्न आजादी का
अधुरा है, कुछ फ़ीका है।
मेरे देश की आजादी
मेरे देश की आजादी,
अद्धभुखी, प्यासी।
निढाल, थकी सी।
पेट के खातिर बेच रही,
हाथो में ले तिरंगा।
नही जानती तिरंगे को,
जश्न आजादी देश
मना रहा।
72वें वर्ष की आजादी,
चिथड़ों में लपेटा तन,
नंगे पैर दौड़ रही है।
खुले आसमान की छत,
सड़क बन गई बिछौना।
चंद तिरंगे बेच रही,
उसके लिए आजादी का,
सिर्फ यही मायने है।
नन्है हाथो को भी फिक्र है,
पेट का यही एक जुगाड़ है।
सौ साल बाद भी अगर,
इसी तरह हाथो मे तिरंगे को,
लहराने के बजाय, बेचना है,
तो अभी भी जश्न आजादी का
अधुरा है, कुछ फ़ीका है।
– हेमलता पालीवाल ‘हेमा’
हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की रचनाएँ
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