लेखनी स्वर्ण प्रासादों को खण्डहर बना सकती है, लेखनी ध्वस्त झोपड़ियों में तूफान उगा सकती है | थके हुये पाँवों [...]
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लेखनी स्वर्ण प्रासादों को
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साधों की देहरी
साधों की देहरी कुआँरी अन छूई है, सपनों की साँस इसे नाँप जाती है | अनचाहे मौसम का तीखापन छूट [...] More -
शत शत नमन कोटि
शत शत नमन कोटि अभिनन्दन श्रद्धा भाव सुमन, हे मानस के अमर पूत तुलसी तेरा वन्दन | नव प्रभात नव [...] More -
मुझको पीड़ा देकर तूने
मुझको पीड़ा देकर तूने मुझ पर ही एहसान किया है, मरू में भटक रहे मृग को आशा का जीवन दान [...] More -
आंगन में उग आई धुप
आंगन में उग आई धुप, दूध में नहाया सा रूप | छत पर अंगड़ाती कपोती की पाँखें, सूनी-सूनी सी है [...] More -
वगुलो की चल पड़ी दुकान
वगुलो की चल पड़ी दुकान, हंस ताल छोड़कर चले गये, मरघट सी लगती सिवान, लाशों पर गिध्द सब झपट पड़े [...] More -
साथ निभाने की कसमें
साथ निभाने की कसमें जो खाते रहते थे अब उनकी सुधियों में खोना अच्छा लगता है | सांसो के सर [...] More -
न छीनो प्यार के मोती
न छीनो प्यार के मोती, सजल मनुहार के मोती, बड़े अनमोल मोती हैं मेरे श्रृंगार के मोती | कभी आहों [...] More -
सुधियों का यह दर्द
सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है, चुपके से आता है सबसे न्यारा लगता है | थके वटोही [...] More