• लेखनी पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    लेखनी स्वर्ण प्रासादों को

    लेखनी स्वर्ण प्रासादों को खण्डहर बना सकती है, लेखनी ध्वस्त झोपड़ियों में तूफान उगा सकती है | थके हुये पाँवों [...] More
  • साधों की देहरी

    साधों की देहरी कुआँरी अन छूई है, सपनों की साँस इसे नाँप जाती है | अनचाहे मौसम का तीखापन छूट [...] More
  • अमरपुट पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    शत शत नमन कोटि

    शत शत नमन कोटि अभिनन्दन श्रद्धा भाव सुमन, हे मानस के अमर पूत तुलसी तेरा वन्दन | नव प्रभात नव [...] More
  • एहसान पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    मुझको पीड़ा देकर तूने

    मुझको पीड़ा देकर तूने मुझ पर ही एहसान किया है, मरू में भटक रहे मृग को आशा का जीवन दान [...] More
  • धुप पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    आंगन में उग आई धुप

    आंगन में उग आई धुप, दूध में नहाया सा रूप | छत पर अंगड़ाती कपोती की पाँखें, सूनी-सूनी सी है [...] More
  • सतरंगी इंद्रधनुष पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    वगुलो की चल पड़ी दुकान

    वगुलो की चल पड़ी दुकान, हंस ताल छोड़कर चले गये, मरघट सी लगती सिवान, लाशों पर गिध्द सब झपट पड़े [...] More
  • साथ निभाने पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    साथ निभाने की कसमें

    साथ निभाने की कसमें जो खाते रहते थे अब उनकी सुधियों में खोना अच्छा लगता है | सांसो के सर [...] More
  • मोती पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    न छीनो प्यार के मोती

    न छीनो प्यार के मोती, सजल मनुहार के मोती, बड़े अनमोल मोती हैं मेरे श्रृंगार के मोती | कभी आहों [...] More
  • सुधियों का यह दर्द

    सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है, चुपके से आता है सबसे न्यारा लगता है | थके वटोही [...] More
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