• राजनीती चलने वालो पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    रगे खू में क्या

    रगे खू में क्या घुला क्या कहें हम जबाँ रख के बेजुबाँ क्यूं रहें हम जबाँ पर ताले लगे है [...] More
  • फरेबी और जूठी दुनिया पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    और हम क्या-क्या

    और हम क्या-क्या करें मुस्कराने के लिये घर हमने जला दिया जगमगाने के लिये दोस्ती वादे वफा सब फरेबों के [...] More
  • सबको अपना समझने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    कभी घर से बाहर

    कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन [...] More
  • अपनों से रिस्ता निभाने पर ग़ज़ल, जगदीश तिवारी

    दिल जो तुम से

    दिल जो तुम से लगा नहीं होता ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता साथ जो छोड़ तुम चले जाते पास कुछ [...] More
  • हर पल की तुम

    हर पल की तुम बात न पूछो कैसे गज़री रात न पूछो बाहर सब कुछ सूखा सूखा अंदर की बरसात [...] More
  • आदमी ख़ुद से

    आदमी ख़ुद से मिला हो तो ग़ज़ल होती है ख़ुद से गर शिकवा गिला हो तो ग़ज़ल होती है अपने जज़्बात [...] More
  • गांव के प्रति अपनेपन पर छंद, जगदीश तिवारी

    शहरी आँधी में रमा,

    शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव । मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।। पीपल बरगद छाँव, हाय! [...] More
  • सम्बन्धो के बिच ग़लतफहमी पर छंद, जगदीश तिवारी

    अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध

    अपनापन हँसता नहीं, रोते हैं सम्बन्ध । प्रीत-प्यार क बीच में, ये कैसी दुर्गन्ध ।। ये कैसी दुर्गन्ध, समझ में [...] More
  • ख़ाक उड़ाते हुए ये म’अरका सर करना है

    ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है इक न इक दिन हमें इस दश्त को घर करना है ये [...] More
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