फिसलन ही फिसलन यहां, फिसल रहा इंसान कीचड़ में सनकर यहां भूल रहा ईमान भोर हुई किरणें हँसें, पंछी गायें [...]
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फिसलन ही फिसलन यहां,
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भीतर उठते भाव को
भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप [...] More -
बाँधे गर तूने रखी
बाँधे गर तूने रखी सड़क नियम से डोर तेरे जीवन से कभी भागेगी न भोर नियम से गाड़ी चला, भाई! [...] More -
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार
गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार सपनों में, मैं देखती [...] More -
सत्ता की चाभी लिए
सत्ता की चाभी लिए, मतदाता लाचार। लोकतंत्र की आड़ में, सजा हुआ बाजार।। नारों वादों का चले, रजत सियासी तीर। [...] More -
कुछ तो ऐसा रच नया
कुछ तो ऐसा रच नया, छन्द हँसै हर द्वार कवियों के दरबार से, दूर भगे भंगार छन्दों के दरबार से, [...] More -
कच्ची माटी से घड़े
कच्ची माटी से घड़े, अलग अलग दे नाम । भांत भांत के ठामड़े, आवें जग के काम । - इक़बाल [...] More