• इंसान के ईमान बदलने पर दोहे, जगदीश तिवारी

    फिसलन ही फिसलन यहां,

    फिसलन ही फिसलन यहां, फिसल रहा इंसान कीचड़ में सनकर यहां भूल रहा ईमान भोर हुई किरणें हँसें, पंछी गायें [...] More
  • माँ शारदा से प्रार्थना पर दोहे, जगदीश तिवारी

    भीतर उठते भाव को

    भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप [...] More
  • बाँधे गर तूने रखी

    बाँधे गर तूने रखी सड़क नियम से डोर तेरे जीवन से कभी भागेगी न भोर नियम से गाड़ी चला, भाई! [...] More
  • जीवनकाल पर दोहे, जगदीश तिवारी

    गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार

    गोरी का घूंघट उठा नयन हो गये चार आँख लगी ना रात भर खुला रहा हिय-द्वार सपनों में, मैं देखती [...] More
  • सत्ता की चाह, अवधेश कुमार 'रजत'

    सत्ता की चाभी लिए

    सत्ता की चाभी लिए, मतदाता लाचार। लोकतंत्र की आड़ में, सजा हुआ बाजार।। नारों वादों का चले, रजत सियासी तीर। [...] More
  • कवियों का दरबार, जगदीश तिवारी

    कुछ तो ऐसा रच नया

    कुछ तो ऐसा रच नया, छन्द हँसै हर द्वार कवियों के दरबार से, दूर भगे भंगार छन्दों के दरबार से, [...] More
  • कच्ची माटी से घड़े, अलग अलग दे नाम

    कच्ची माटी से घड़े

    कच्ची माटी से घड़े, अलग अलग दे नाम । भांत भांत के ठामड़े, आवें जग के काम । - इक़बाल [...] More
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