• नादाँ पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    वो समझते हैं

    वो समझते हैं अंजान हूं मैं सब समझता हूं इंसान हूं मैं कुछ रिवाजों का ख़ौफ़ है मुझको लोग ना [...] More
  • अनजान पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    बहुत हो चुकी

    बहुत हो चुकी पहचान रहने दो कुछ बातों से अनजान रहने दो छेड़ो ना तुम जज़्बात को मेरे हुआ तो [...] More
  • एहसान पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    मुझको पीड़ा देकर तूने

    मुझको पीड़ा देकर तूने मुझ पर ही एहसान किया है, मरू में भटक रहे मृग को आशा का जीवन दान [...] More
  • धुप पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    आंगन में उग आई धुप

    आंगन में उग आई धुप, दूध में नहाया सा रूप | छत पर अंगड़ाती कपोती की पाँखें, सूनी-सूनी सी है [...] More
  • शक्ल से ही बस कबाड़ी लगता है

    शक्ल से ही बस कबाड़ी लगता है आदमी लेकिन जुगाड़ी लगता है जिस अदा से है हराया खुद को ही [...] More
  • आज ये हादसा नहीं होता

    आज ये हादसा नहीं होता हाथ जो आपका नहीं होता हाथ जो आपका नहीं होता मर्ज़ ये ला दवा नहीं [...] More
  • डरने पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    ना खिज़ा से डरो

    ना खिज़ा से डरो, ना हवा से डरो तितलियों की मगर बददुआ से डरो रीत बदली सभी आज के दौर [...] More
  • बदलने पर ग़ज़ल, इक़बाल हुसैन “इक़बाल”

    कथाकार बदल गये

    कथाकार बदल गये अदाकार बदल गये रौनक बदल गयी सब सभागार बदल गये निज़ाम की तो हद है खतावार बदल [...] More
  • जब तक उससे लाभ था

    जब तक उससे लाभ था तब तक था वो मीत लाभ न उससे जब मिला फिर काहे की प्रीत जनता [...] More
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