पसरा है मधुमास हमारे आंगन में, विन वादल वरसात हमारे आगन में | पुरुआ ने ली अंगड़ाई मन बहक गया, पपिहे की सुन तान अचानक दहक गया | वौराये आमों का भी मन भींग गया, गाते गाते भौरों का मन बहक गया || बहक गया आकाश हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में || मन के भीतर परदेसी कुछ कहता है, सुधियों का घन झरझर सवन वरसता है | भींगी पलकों पर आकर मडरा जाते, पपिहे का मन स्वाती बिना तरसता है || तरस रहा विश्वास हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में | गदराये यौवन का मधुर उभार लिये सतरंगी आखों में बसे श्रृंगार लिये | पोर-पोर महुये का भी मन टीस रहा, अन्तर में अंगार अधर पर प्यार लिये | अधरों का इतिहास हमारे आंगन में, विन बादल वरसात हमारे आंगन में || हरसिंगार की डाली पर खोई-खोई, गलियारे की आखें भी रोई रोई | पथराये नैनों में जब सपने आते, पलकों पर प्रियतम की यादें हैं सोई || यह कैसा परिहास हमारे आंगन में | बिन बादल बरसात हमारे आंगन में || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
पसरा है मधुमास हमारे आंगन में
पसरा है मधुमास हमारे आंगन में,
विन वादल वरसात हमारे आगन में |
पुरुआ ने ली अंगड़ाई मन बहक गया,
पपिहे की सुन तान अचानक दहक गया |
वौराये आमों का भी मन भींग गया,
गाते गाते भौरों का मन बहक गया ||
बहक गया आकाश हमारे आंगन में,
विन बादल वरसात हमारे आंगन में ||
मन के भीतर परदेसी कुछ कहता है,
सुधियों का घन झरझर सवन वरसता है |
भींगी पलकों पर आकर मडरा जाते,
पपिहे का मन स्वाती बिना तरसता है ||
तरस रहा विश्वास हमारे आंगन में,
विन बादल वरसात हमारे आंगन में |
गदराये यौवन का मधुर उभार लिये
सतरंगी आखों में बसे श्रृंगार लिये |
पोर-पोर महुये का भी मन टीस रहा,
अन्तर में अंगार अधर पर प्यार लिये |
अधरों का इतिहास हमारे आंगन में,
विन बादल वरसात हमारे आंगन में ||
हरसिंगार की डाली पर खोई-खोई,
गलियारे की आखें भी रोई रोई |
पथराये नैनों में जब सपने आते,
पलकों पर प्रियतम की यादें हैं सोई ||
यह कैसा परिहास हमारे आंगन में |
बिन बादल बरसात हमारे आंगन में ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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