बेरहम हो गया किस कदर ये जहां कांपती हैं जमी कांपता आसमाँ शोख़ जलवे सभी, खून से सन रहे आग बरसा रहीं फूल सी वादियाँ लूट कर ले गया कौन चेनो अमन परचमे मेल की कर गया धज्जियाँ ग़ैर को दे रहे आज मौका हँसे पुर सुकूं मुल्क पर उठ रहीं उंगलियां सुर्ख बुटे हुवे ज़र्द अफसोस से थरथराने लगीं ख़ौफ़ से तितलियां आबे दरिया ज़हर सा धरे रूप जब बोलिये किस तरह फिर जियें मछलियाँ – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बेरहम हो गया
बेरहम हो गया किस कदर ये जहां
कांपती हैं जमी कांपता आसमाँ
शोख़ जलवे सभी, खून से सन रहे
आग बरसा रहीं फूल सी वादियाँ
लूट कर ले गया कौन चेनो अमन
परचमे मेल की कर गया धज्जियाँ
ग़ैर को दे रहे आज मौका हँसे
पुर सुकूं मुल्क पर उठ रहीं उंगलियां
सुर्ख बुटे हुवे ज़र्द अफसोस से
थरथराने लगीं ख़ौफ़ से तितलियां
आबे दरिया ज़हर सा धरे रूप जब
बोलिये किस तरह फिर जियें मछलियाँ
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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