बाद चारागरी के सिला ये मिला और बढने लगा दर्द का सिलसिला गर नशेमन मेरा जल गया गम नहीं आप तो दूर थे हाथ कैसे जला पुछते हो अगर तुम मेरे हाथ की करने निकले थे हम किसी का भला फूल को जख्म भी तो उसी ने दिए फूल के साथ जो खार अक्सर पला लोग सहमे हुए आज देखें उन्हें छोड़कर जो निशां चल दिया काफिला एक तजवीज़ ही काम आएगी अब खूब निपटा लिया बात से मरहला – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बाद चारागरी के सिला ये मिला
बाद चारागरी के सिला ये मिला
और बढने लगा दर्द का सिलसिला
गर नशेमन मेरा जल गया गम नहीं
आप तो दूर थे हाथ कैसे जला
पुछते हो अगर तुम मेरे हाथ की
करने निकले थे हम किसी का भला
फूल को जख्म भी तो उसी ने दिए
फूल के साथ जो खार अक्सर पला
लोग सहमे हुए आज देखें उन्हें
छोड़कर जो निशां चल दिया काफिला
एक तजवीज़ ही काम आएगी अब
खूब निपटा लिया बात से मरहला
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
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