ख़्वाहिश फिर बचपन जीने की खुले आसमा में उड़ने की ख़्वाहिश फिर चाँद तारों को छूने की सारी दुनिया को बदलने की चलो फिर होसलों को बुलंद करते हैं अधूरी चाहतों को पूरी करते हैं चलो फिर बचपन मिल के जीते हैं अधूरे सपनों को रंग भरते हैं साथ तुम्हारे अयान ज़िंदगी की नयी शुरुआत करते हैं –एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
ख़्वाहिश फिर बचपन जीने की
ख़्वाहिश फिर बचपन जीने की
खुले आसमा में उड़ने की
ख़्वाहिश फिर चाँद तारों को छूने की
सारी दुनिया को बदलने की
चलो फिर होसलों को बुलंद करते हैं
अधूरी चाहतों को पूरी करते हैं
चलो फिर बचपन मिल के जीते हैं
अधूरे सपनों को रंग भरते हैं
साथ तुम्हारे अयान
ज़िंदगी की नयी शुरुआत करते हैं
–एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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