अपने नरम हाथो से
नरम-नरम रोटी सेंकती,
एक -एक निवाला वो
हमे खिलाकर फिर खाती,
आज उस जननी का श्राद्ध
हमे मनाना है, अर्पण-तर्पण
से उसे भोग लगाना है ।
भरे-पुरे परिवार संग,
श्रद्धा अर्पण करनी है,
श्राद्ध-तिथि पर आज उसे
मौन-श्रृदांजलि देनी है ।
नैनो मे मेरे अश्क-सागर होगा
मन कूंठित व दिल गमगीन होगा,
मातृ-ऋण है यह पुराना,
श्राद्ध-कर्म करना होगा ।
लब्ज़ खामोश रहकर, ज़ब्बा
मौन श्रृदांजलि देगी,
दिल मे उठते, भाव-तरंगे
अश्क-बूँदो को रोक लेगी ।
श्राद्ध-पक्ष मे हे जननी
हमको तो तु आशिष ही देगी।
तुम्हारी-बेटी ————–
अपने नरम हाथो से
अपने नरम हाथो से
नरम-नरम रोटी सेंकती,
एक -एक निवाला वो
हमे खिलाकर फिर खाती,
आज उस जननी का श्राद्ध
हमे मनाना है, अर्पण-तर्पण
से उसे भोग लगाना है ।
भरे-पुरे परिवार संग,
श्रद्धा अर्पण करनी है,
श्राद्ध-तिथि पर आज उसे
मौन-श्रृदांजलि देनी है ।
नैनो मे मेरे अश्क-सागर होगा
मन कूंठित व दिल गमगीन होगा,
मातृ-ऋण है यह पुराना,
श्राद्ध-कर्म करना होगा ।
लब्ज़ खामोश रहकर, ज़ब्बा
मौन श्रृदांजलि देगी,
दिल मे उठते, भाव-तरंगे
अश्क-बूँदो को रोक लेगी ।
श्राद्ध-पक्ष मे हे जननी
हमको तो तु आशिष ही देगी।
तुम्हारी-बेटी ————–
– हेमलता पालीवाल “हेमा
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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