आदमी को क्या हुआ ये कह रहा है आइना लड़ रहे क्यों आदमी ये सोचता है आइना मारता क्यों आदमी को आदमी ही है यहाँ बात ये सारे जहाँ से पूछता है आइना अब शराफ़त की जहाँ में मीत कुछ क़ीमत नहीं ये हक़ीक़त जानकर सब, रो रहा है आइना गाँव की चौपाल भी तो पहले सी लगती नहीं गाँव के सरपंच जी को कोसता है आइना क्यों नदी में मीत लहरें पहले सी मचलें नहीं बात यह जाकर नदी से पूछता है आइना जो ग़ज़ल मैंने लिखी है आइने के नाम पर शेर पढ़कर उस ग़ज़ल के खौलता है आइना अब चलो “जगदीश” ख़ुद हम आइने से पूछ लें आदमी के बारे में क्या सोचता है आइना – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
आदमी को क्या हुआ
आदमी को क्या हुआ ये कह रहा है आइना
लड़ रहे क्यों आदमी ये सोचता है आइना
मारता क्यों आदमी को आदमी ही है यहाँ
बात ये सारे जहाँ से पूछता है आइना
अब शराफ़त की जहाँ में मीत कुछ क़ीमत नहीं
ये हक़ीक़त जानकर सब, रो रहा है आइना
गाँव की चौपाल भी तो पहले सी लगती नहीं
गाँव के सरपंच जी को कोसता है आइना
क्यों नदी में मीत लहरें पहले सी मचलें नहीं
बात यह जाकर नदी से पूछता है आइना
जो ग़ज़ल मैंने लिखी है आइने के नाम पर
शेर पढ़कर उस ग़ज़ल के खौलता है आइना
अब चलो “जगदीश” ख़ुद हम आइने से पूछ लें
आदमी के बारे में क्या सोचता है आइना
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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