अजब मौजे तूफ़ान के वलवले हैं । नदी की अगन से किनारे जले हैं । दहकते बदन से डरे कब पतंगे, पता था कि मिलकर जलेंगे जले हैं । बहकना मचलना महकना बिखरना, यही सिलसिले तो अज़ल से पले हैं । कमा कर रहे उम्र भर हाथ ख़ाली, वहीं हम खड़े हैं जहाँ से चले हैं । चली हैं चलेंगी सियासी हवाएं, किसी को छलें तो किसी को फले हैं । कभी लोग इक़बाल तुझसे कहेंगे, तुरे श अ र सारे तड़प में ढले हैं । – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अजब मौजे तूफ़ान
अजब मौजे तूफ़ान के वलवले हैं ।
नदी की अगन से किनारे जले हैं ।
दहकते बदन से डरे कब पतंगे,
पता था कि मिलकर जलेंगे जले हैं ।
बहकना मचलना महकना बिखरना,
यही सिलसिले तो अज़ल से पले हैं ।
कमा कर रहे उम्र भर हाथ ख़ाली,
वहीं हम खड़े हैं जहाँ से चले हैं ।
चली हैं चलेंगी सियासी हवाएं,
किसी को छलें तो किसी को फले हैं ।
कभी लोग इक़बाल तुझसे कहेंगे,
तुरे श अ र सारे तड़प में ढले हैं ।
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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