मैं धरती बनकर रहूँ तू बन जा आकाश तेरे मेरे बीच में बनी रहे इक प्यास ठुमक ठुमक गोरी चले ताक रहा कचनार कलियाँ खिलकर हँस रहीं भंवर करें गुंजार भीतर भीतर जल रही तड़फे हिय-गुलनार आजा अब तो साजना फागुन के दिन चार मटक मटक गोरी चली होरी खेलन देख नयन सजन से क्या मिले लांघ गयी सब रेख काना तुझमें ही रमा जान ज़रा ये मीत वृन्दावन में गा रहा जाकर तू क्यों गीत शब्दों के आँगन रमू छन्द रचूं दिन रात दोहा गीत ग़ज़ल सनम छोड़ें कभी न साथ मतलब की दुनिया सभी मतलब के सब यार उससे रिश्ता जोड़ ले वहीं मिलेगा प्यार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मैं धरती बनकर रहूँ
मैं धरती बनकर रहूँ तू बन जा आकाश
तेरे मेरे बीच में बनी रहे इक प्यास
ठुमक ठुमक गोरी चले ताक रहा कचनार
कलियाँ खिलकर हँस रहीं भंवर करें गुंजार
भीतर भीतर जल रही तड़फे हिय-गुलनार
आजा अब तो साजना फागुन के दिन चार
मटक मटक गोरी चली होरी खेलन देख
नयन सजन से क्या मिले लांघ गयी सब रेख
काना तुझमें ही रमा जान ज़रा ये मीत
वृन्दावन में गा रहा जाकर तू क्यों गीत
शब्दों के आँगन रमू छन्द रचूं दिन रात
दोहा गीत ग़ज़ल सनम छोड़ें कभी न साथ
मतलब की दुनिया सभी मतलब के सब यार
उससे रिश्ता जोड़ ले वहीं मिलेगा प्यार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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