भूलकर हर अलम अब ख़ुशी चाहिये बस ख़ुशी से भरी ज़िन्दगी चाहिये भूल बैठा हूँ आलम को तेरे लिए इस ख़ता की सज़ा अब नही चाहिये है अँधेरा ये माना तेरे चारसू तू जला ख़ुद को गर रौशनी चाहिये क्या मिलेगा हमें दुश्मनी से भला दुश्मनी भूल जा दोस्ती चाहिये चार पैरों पे यूँ ही टिका खाट है एक भी टूटे तो फिर नही चाहिये चाँद में दाग होता है देखो मगर रौशनी फिर भी मुझको वही चाहिये तुम किसी चाँद से भी तो कम हो नहीं चाँद से कम मुझे अब नहीं चाहिये ‘शाद’ कहता रहा उम्रभर साथ दो साथ अब आपका हर घड़ी चाहिये – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भूलकर हर अलम
भूलकर हर अलम अब ख़ुशी चाहिये
बस ख़ुशी से भरी ज़िन्दगी चाहिये
भूल बैठा हूँ आलम को तेरे लिए
इस ख़ता की सज़ा अब नही चाहिये
है अँधेरा ये माना तेरे चारसू
तू जला ख़ुद को गर रौशनी चाहिये
क्या मिलेगा हमें दुश्मनी से भला
दुश्मनी भूल जा दोस्ती चाहिये
चार पैरों पे यूँ ही टिका खाट है
एक भी टूटे तो फिर नही चाहिये
चाँद में दाग होता है देखो मगर
रौशनी फिर भी मुझको वही चाहिये
तुम किसी चाँद से भी तो कम हो नहीं
चाँद से कम मुझे अब नहीं चाहिये
‘शाद’ कहता रहा उम्रभर साथ दो
साथ अब आपका हर घड़ी चाहिये
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
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