अब तो ऐसा लगता जैसे हर सावन सूखा होगा धरती खूँ कि प्यासी होगी हर मानव भूखा होगा व्याकुल प्यासा है जान जीवन सबकी त्रृषा वुझाये कौन फन्दा सबके गले पड़ा है आखिर गला छुड़ाये कौन रूठ गयी खुशिया पलको से अधरो से रूठी मुसकान राधा से काँधा रूठे है रूठ गयी है वंशितान अपनी डफली सबके हाथो लेकिन प्रथम बजाये कौन सभी यहाँ पर भटक रहे हैं सबके राह दिखाये कौन यहाँ अनैतिकता के पत्थर पर नवीन बुत वनते हैं अत्याचारी शासन करते शोषित तो चुप रहते है अलग अलग सबके नारे हैं सबको साथ मिलाये कौन फन्दा सबके गले पड़ा है आखिर गला छुड़ाये कौन | – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अब तो ऐसा लगता जैसे
अब तो ऐसा लगता जैसे
हर सावन सूखा होगा
धरती खूँ कि प्यासी होगी
हर मानव भूखा होगा
व्याकुल प्यासा है जान जीवन
सबकी त्रृषा वुझाये कौन
फन्दा सबके गले पड़ा है
आखिर गला छुड़ाये कौन
रूठ गयी खुशिया पलको से
अधरो से रूठी मुसकान
राधा से काँधा रूठे है
रूठ गयी है वंशितान
अपनी डफली सबके हाथो
लेकिन प्रथम बजाये कौन
सभी यहाँ पर भटक रहे हैं
सबके राह दिखाये कौन
यहाँ अनैतिकता के पत्थर
पर नवीन बुत वनते हैं
अत्याचारी शासन करते
शोषित तो चुप रहते है
अलग अलग सबके नारे हैं
सबको साथ मिलाये कौन
फन्दा सबके गले पड़ा है
आखिर गला छुड़ाये कौन |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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