पंछी कलरव कर रहे भंवर करें गुंजार कूक रही कोयल सनम ! भटकाये कचनार मेरे हिय आँगन हँसे जब जब ये मधुमास तेरी चाहत की सनम ! बढ़ती जाती प्यास कभी कुनकुनी धूप में खुद को कर आबाद बाँह पकड़ मधुमास की कर उससे संवाद मधुमय जीवन हो गया जब आया मधुमास देख धरा को ताकता छुप छुप कर आकाश जीवन भर थामे रखा जिसने मेरा हाथ बुरे दिनों में छोड़ दूं कैसे उसका साथ जो हमारा खास रहा तोड़ गया विश्वास कैसे हँसता फिर बता सपनों का आकाश पीपल बूढ़ा हो गया फिर भी देता छाँव कुछ तो इससे सीख ले पार लगा दे नाव – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
पंछी कलरव कर रहे
पंछी कलरव कर रहे भंवर करें गुंजार
कूक रही कोयल सनम ! भटकाये कचनार
मेरे हिय आँगन हँसे जब जब ये मधुमास
तेरी चाहत की सनम ! बढ़ती जाती प्यास
कभी कुनकुनी धूप में खुद को कर आबाद
बाँह पकड़ मधुमास की कर उससे संवाद
मधुमय जीवन हो गया जब आया मधुमास
देख धरा को ताकता छुप छुप कर आकाश
जीवन भर थामे रखा जिसने मेरा हाथ
बुरे दिनों में छोड़ दूं कैसे उसका साथ
जो हमारा खास रहा तोड़ गया विश्वास
कैसे हँसता फिर बता सपनों का आकाश
पीपल बूढ़ा हो गया फिर भी देता छाँव
कुछ तो इससे सीख ले पार लगा दे नाव
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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