मेहरबानी अपनों की, ये ही बहुत है कम से कम, ग़ैर से लुटवाया तो नहीं होके दर-बदर भी रह, इतनी तसल्ली मेरे नाम की, तख़्ती को हटवाया तो नहीं चाहे मारते हों पत्थर, वो मेरे आम पर ये इनायत है उनकी, कटवाया तो नहीं – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मेहरबानी अपनों की
मेहरबानी अपनों की, ये ही बहुत है
कम से कम, ग़ैर से लुटवाया तो नहीं
होके दर-बदर भी रह, इतनी तसल्ली
मेरे नाम की, तख़्ती को हटवाया तो नहीं
चाहे मारते हों पत्थर, वो मेरे आम पर
ये इनायत है उनकी, कटवाया तो नहीं
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
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