कैसा आया है समय खुद का करे बखान अपने हाथों कर रहा अपना ही सम्मान जब तक फूल ख़िला रहा, रहा गले का हार जैसे ही मुरझा गया डाला एक किनार जब से काटे पेड़ ये सपन बनी सब छाँव उजड़ा उजड़ा सा लगे मुझको मेरा गाँव कौन यहाँ शैतान है कौन यहाँ इन्सान मुश्किल भाई हो गई इन्सॉ की पहचान बदल रहे हैं देख ले, जीवन के प्रतिमान सच्चे सारे रो रहे झूठों का गुणगान एक समय होता सनम हम उड़ते आकाश एक समय ऐसा सनम रुक जाती है साँस उससे भी कुछ बात कर उसका नित कर ध्यान थम जायेगा देखना अन्दर का तूफान – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कैसा आया है समय
कैसा आया है समय खुद का करे बखान
अपने हाथों कर रहा अपना ही सम्मान
जब तक फूल ख़िला रहा, रहा गले का हार
जैसे ही मुरझा गया डाला एक किनार
जब से काटे पेड़ ये सपन बनी सब छाँव
उजड़ा उजड़ा सा लगे मुझको मेरा गाँव
कौन यहाँ शैतान है कौन यहाँ इन्सान
मुश्किल भाई हो गई इन्सॉ की पहचान
बदल रहे हैं देख ले, जीवन के प्रतिमान
सच्चे सारे रो रहे झूठों का गुणगान
एक समय होता सनम हम उड़ते आकाश
एक समय ऐसा सनम रुक जाती है साँस
उससे भी कुछ बात कर उसका नित कर ध्यान
थम जायेगा देखना अन्दर का तूफान
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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