मन को जो वश में रखा होगी कभी न शाम मिल जायेगा फिर तुझे तुझको तेरा राम जब तक तुझ में सांस है अपनी रोटी सेक साँसों का दरबार है तेरा जीवन एक जब तक कुरसी पास है तब तक खा ले बेर जैसे ही कुरसी गयी हो जायेगा ढेर मन में जो ये गांठ है भाई इसको खोल ये जीवन अनमोल है इसमें ज़हर न घोल अपने अन्तस् का जगा सोया ये इन्सान पैदा मत कर राह में लोगों के व्यवधान जीवन भर करता रहा उलटे सीधे काम और लगे इल्ज़ाम तो याद आ रहा राम मानवता हँसने लगे कर ऐसा किरदार सब देखें तेरी तरफ तेरा हो सत्कार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मन को जो वश में
मन को जो वश में रखा होगी कभी न शाम
मिल जायेगा फिर तुझे तुझको तेरा राम
जब तक तुझ में सांस है अपनी रोटी सेक
साँसों का दरबार है तेरा जीवन एक
जब तक कुरसी पास है तब तक खा ले बेर
जैसे ही कुरसी गयी हो जायेगा ढेर
मन में जो ये गांठ है भाई इसको खोल
ये जीवन अनमोल है इसमें ज़हर न घोल
अपने अन्तस् का जगा सोया ये इन्सान
पैदा मत कर राह में लोगों के व्यवधान
जीवन भर करता रहा उलटे सीधे काम
और लगे इल्ज़ाम तो याद आ रहा राम
मानवता हँसने लगे कर ऐसा किरदार
सब देखें तेरी तरफ तेरा हो सत्कार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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