जख़्म मिले जग से बहुत मानी कभी न हार और कभी तोड़ा नहीं अपनों से व्यवहार करना जो चाहा यहाँ वही किया है काम और कभी सोचा नहीं क्या होगा अन्जाम अपने में साहस जगा बना नई तस्वीर तेरे ही है हाथ में तेरी ये तक़ दीर तेरी धरती में खुदा कोई रहा न नेक कोई तो अच्छा मिले मुझे यहाँ पर एक धरती पर गुण्डे बसे फैला उनका जाल अब तो आओ बाँवरे कुछ तो करो कमाल सभी मीत लगते हमें भाई पेड़ खजूर बुरे दिनों में मीत जब हो जाते हैं दूर मीत ! समय की चाल से बाँधे रखना डोर कभी न मुँह की खायगा सदा हँसेगी भोर – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जख़्म मिले जग से बहुत
जख़्म मिले जग से बहुत मानी कभी न हार
और कभी तोड़ा नहीं अपनों से व्यवहार
करना जो चाहा यहाँ वही किया है काम
और कभी सोचा नहीं क्या होगा अन्जाम
अपने में साहस जगा बना नई तस्वीर
तेरे ही है हाथ में तेरी ये तक़ दीर
तेरी धरती में खुदा कोई रहा न नेक
कोई तो अच्छा मिले मुझे यहाँ पर एक
धरती पर गुण्डे बसे फैला उनका जाल
अब तो आओ बाँवरे कुछ तो करो कमाल
सभी मीत लगते हमें भाई पेड़ खजूर
बुरे दिनों में मीत जब हो जाते हैं दूर
मीत ! समय की चाल से बाँधे रखना डोर
कभी न मुँह की खायगा सदा हँसेगी भोर
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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