धकेला और छूटे हुवे को इस हवा ने बिखेरा और टूटे हुवे को इस हवा ने चुरा कर पेड़ पर जो रखा था वो ख़जाना लुटाया खूब लुटे हुवे को इस हवा ने बचा कर एक टूटा हुआ दर्पण रखा था किया है चूर फूटे हुवे को इस हवा ने लगी में और ज्यादा लगाए ये ज़माना किया है दूर रूठे हुवे को इस हवा ने – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
धकेला और छूटे
धकेला और छूटे हुवे को इस हवा ने
बिखेरा और टूटे हुवे को इस हवा ने
चुरा कर पेड़ पर जो रखा था वो ख़जाना
लुटाया खूब लुटे हुवे को इस हवा ने
बचा कर एक टूटा हुआ दर्पण रखा था
किया है चूर फूटे हुवे को इस हवा ने
लगी में और ज्यादा लगाए ये ज़माना
किया है दूर रूठे हुवे को इस हवा ने
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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