मुझको पीड़ा देकर तूने मुझ पर ही एहसान किया है,
मरू में भटक रहे मृग को आशा का जीवन दान दिया है |
पतझर के सूने सुहाग में जब पलाश ने आग लगाई,
सिसक उठी रूठी अमराई जब कोकिल ने प्रीति जगाई,
चन्दा ने अमृत वरसाकर कलियों को मुसकान दिया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
सागर ने जाब वांह उठाकर नभ आलिंगन करना चाहा,
थके वटोही को सुधियों के सापों ने जब डसना चाहा,
दूर किनारों ने मुह ढककर जन्म मरण का गान किया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
दर्पण में घूमिल छवि देखी सूरज ने मुंह फेर लिया था,
और परी संध्या रानी ने अलको से छिति घेर लिया था,
रुपहले तारों ने सहसा स्मृतियों का प्रतिदान किया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
बरबस मृग मृष्णा के पीछे जीवन भार हुआ जाता है,
अनजाने वन्धन के नाते अपना सगा कहा जाता हो |
छोड़ शून्य के अन्तराल में जीने का वरदान दिया है,
मुझको पीड़ा देकर तुमने मुझ पर ही एहसान किया है
मुझको पीड़ा देकर तूने
मुझको पीड़ा देकर तूने मुझ पर ही एहसान किया है,
मरू में भटक रहे मृग को आशा का जीवन दान दिया है |
पतझर के सूने सुहाग में जब पलाश ने आग लगाई,
सिसक उठी रूठी अमराई जब कोकिल ने प्रीति जगाई,
चन्दा ने अमृत वरसाकर कलियों को मुसकान दिया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
सागर ने जाब वांह उठाकर नभ आलिंगन करना चाहा,
थके वटोही को सुधियों के सापों ने जब डसना चाहा,
दूर किनारों ने मुह ढककर जन्म मरण का गान किया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
दर्पण में घूमिल छवि देखी सूरज ने मुंह फेर लिया था,
और परी संध्या रानी ने अलको से छिति घेर लिया था,
रुपहले तारों ने सहसा स्मृतियों का प्रतिदान किया है |
मुझको पीड़ा देकर तुमने……….
बरबस मृग मृष्णा के पीछे जीवन भार हुआ जाता है,
अनजाने वन्धन के नाते अपना सगा कहा जाता हो |
छोड़ शून्य के अन्तराल में जीने का वरदान दिया है,
मुझको पीड़ा देकर तुमने मुझ पर ही एहसान किया है
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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