साथ निभाने की कसमें जो खाते रहते थे
अब उनकी सुधियों में खोना अच्छा लगता है |
सांसो के सर पर जिनको सदा सवाँरा था,
विरह राग में उनको गाना अच्छा लगता है ||
पलकों पर मडराते बादल रुक रुक बरस रहे,
बनजारे नैनों का झरना अच्छा लगता है ||
जब गुलाब की गंध पसरकर आमंत्रण भेजे,
उनपर भौरे का मंडराना अच्छा लगता है |
होठों की वह हँसी चाँदिनी रस छलका जाये,
झर झर झर पलाश का झरना अच्छा लगता है |
सागर सी गहरी आँखों पर वोझिल सी पलकें,
लहरों सा उठ-उठ गिर जाना अच्छा लगता है ||
साथ निभाने की कसमें
साथ निभाने की कसमें जो खाते रहते थे
अब उनकी सुधियों में खोना अच्छा लगता है |
सांसो के सर पर जिनको सदा सवाँरा था,
विरह राग में उनको गाना अच्छा लगता है ||
पलकों पर मडराते बादल रुक रुक बरस रहे,
बनजारे नैनों का झरना अच्छा लगता है ||
जब गुलाब की गंध पसरकर आमंत्रण भेजे,
उनपर भौरे का मंडराना अच्छा लगता है |
होठों की वह हँसी चाँदिनी रस छलका जाये,
झर झर झर पलाश का झरना अच्छा लगता है |
सागर सी गहरी आँखों पर वोझिल सी पलकें,
लहरों सा उठ-उठ गिर जाना अच्छा लगता है ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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