सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है, चुपके से आता है सबसे न्यारा लगता है | थके वटोही सा आता है , चन्दा सा छुप-छुप जाता है | सुलग-सुलग कर मन के भीतर, बरबस आग लगा जाता है || जीवन तम में जुगनू सा उजियारा लगता है, सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है || बीते दिन की बीती बातें, कितनी कसक भरी वे घातें | मन की गाँठे खुल जाती हैं, तनहाई की भीगी रातें || एकाकी जीवन में अब अधियारा लगता है, सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है || – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सुधियों का यह दर्द
सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है,
चुपके से आता है सबसे न्यारा लगता है |
थके वटोही सा आता है ,
चन्दा सा छुप-छुप जाता है |
सुलग-सुलग कर मन के भीतर,
बरबस आग लगा जाता है ||
जीवन तम में जुगनू सा उजियारा लगता है,
सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है ||
बीते दिन की बीती बातें,
कितनी कसक भरी वे घातें |
मन की गाँठे खुल जाती हैं,
तनहाई की भीगी रातें ||
एकाकी जीवन में अब अधियारा लगता है,
सुधियों का यह दर्द बड़ा ही प्यारा लगता है ||
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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