सपने सब ढहने लगे जीना हुआ दुश्वार सुख की बगिया में लगी जब से खरपतवार उतर गये नकली सभी चेहरे से नकाब सपने जब हँसने लगे खिलकर एक गुलाब पिछली सारी ज़िन्दगी खुलकर करे बयान यादों का जब सिलसिला लेता तम्बू तान एक नये विश्वास का करके वो श्रृंगार सपनों को करने चला अपने वो साकार गीतों के आकाश में बजा रहा है ढोल दोहों से भी प्यार कर ये भी हैं अनमोल खेल रहा जो खेल तू सोच समझ कर खेल उलटे सीधे काम ये कर न दें तुझे फेल उम्मीदों के द्वार पर फागुन छिड़के रंग कोयल कूके डाल पर काग बजाए चंग – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सपने सब ढहने लगे
सपने सब ढहने लगे जीना हुआ दुश्वार
सुख की बगिया में लगी जब से खरपतवार
उतर गये नकली सभी चेहरे से नकाब
सपने जब हँसने लगे खिलकर एक गुलाब
पिछली सारी ज़िन्दगी खुलकर करे बयान
यादों का जब सिलसिला लेता तम्बू तान
एक नये विश्वास का करके वो श्रृंगार
सपनों को करने चला अपने वो साकार
गीतों के आकाश में बजा रहा है ढोल
दोहों से भी प्यार कर ये भी हैं अनमोल
खेल रहा जो खेल तू सोच समझ कर खेल
उलटे सीधे काम ये कर न दें तुझे फेल
उम्मीदों के द्वार पर फागुन छिड़के रंग
कोयल कूके डाल पर काग बजाए चंग
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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