भीतर की अच्छाइयाँ भरें मनुज में रंग यही रंग तो मनुज को जीने का दे ढंग सच्चाई जिसमें हँसे ना जिसमें कुछ खोट उससे हाथ मिलाइए कभी न देगा चोट तेरे ओछे बोल ये हिय में करते घाव अपने इस स्वभाव में कुछ तो ला बदलाव दोहे के दरबार में आया है जगदीश माँ उसकी ही जीत हो उसको दे आशीष कथनी करनी में नहीं पहले जैसी लोच छोटा कैसे हो गया मानव तेरा सोच माँ सुनाती कहानियाँ मैं सुनता था रोज भाई ! वही कहानियाँ भरती मुझमें ओज यादें माँ की आज भी डाले एक पड़ाव ममता के अहसास का जिसमें बहे बहाव – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भीतर की अच्छाइयाँ भरें
भीतर की अच्छाइयाँ भरें मनुज में रंग
यही रंग तो मनुज को जीने का दे ढंग
सच्चाई जिसमें हँसे ना जिसमें कुछ खोट
उससे हाथ मिलाइए कभी न देगा चोट
तेरे ओछे बोल ये हिय में करते घाव
अपने इस स्वभाव में कुछ तो ला बदलाव
दोहे के दरबार में आया है जगदीश
माँ उसकी ही जीत हो उसको दे आशीष
कथनी करनी में नहीं पहले जैसी लोच
छोटा कैसे हो गया मानव तेरा सोच
माँ सुनाती कहानियाँ मैं सुनता था रोज
भाई ! वही कहानियाँ भरती मुझमें ओज
यादें माँ की आज भी डाले एक पड़ाव
ममता के अहसास का जिसमें बहे बहाव
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें