हिय-आँगन में ही उगा मीत प्रीत की बेल हर पल इसको सींचना यही खेलना खेल मीठा मीठा बोलना, सबसे रखना मेल होने ना देना कभी अपने को बेमेल पद से उतरा क्या ज़रा देख ! हो गई रात इर्द गिर्द कोई नहीं नहीं रही वो बात पद ऊँचा क्या मिल गया भूल गया औकात ऐरे गैरों से नहीं अब वो करता बात लेखन जिसका कुछ नहीं कवियों का सरदार दूजे की रचना पढ़े मंचों पर जो यार मंचों पर क्यों छा रही समज गया मैं यार लिख लिख के तू दे रहा ग़ज़ल उसे हर बार आए खाली हाथ हैं जाना खाली हाथ कौन यहाँ ले जा सका ये धन दौलत साथ – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हिय आँगन में ही उगा
हिय-आँगन में ही उगा मीत प्रीत की बेल
हर पल इसको सींचना यही खेलना खेल
मीठा मीठा बोलना, सबसे रखना मेल
होने ना देना कभी अपने को बेमेल
पद से उतरा क्या ज़रा देख ! हो गई रात
इर्द गिर्द कोई नहीं नहीं रही वो बात
पद ऊँचा क्या मिल गया भूल गया औकात
ऐरे गैरों से नहीं अब वो करता बात
लेखन जिसका कुछ नहीं कवियों का सरदार
दूजे की रचना पढ़े मंचों पर जो यार
मंचों पर क्यों छा रही समज गया मैं यार
लिख लिख के तू दे रहा ग़ज़ल उसे हर बार
आए खाली हाथ हैं जाना खाली हाथ
कौन यहाँ ले जा सका ये धन दौलत साथ
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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