ख़त जो मिला किसी का मुकद्दर संवर गया दौरे खिजां में घर मेरा फूलों से भर गया जो डर गया उसे ये समंदर निगल गया साहिल मिला उसे जो भंवर में उतर गया वो बेवफ़ा नहीं था हर इल्ज़ाम झूठ था पर आबरू रखे था ग़ैरत से मर गया ताले लगा रहे थे देखकर सभी मुझे कुण्डी खुली मिली थी जब अपने घर गया तिरछी हुई नज़र तो एक तीर सा लगा ऐसा चला नज़र से जिगर में उतर गया इस मनचली पवन का ऐतबार क्यूं करें जब-जब किया भरोसा आशियां बिखर गया – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
ख़त जो मिला किसी का
ख़त जो मिला किसी का मुकद्दर संवर गया
दौरे खिजां में घर मेरा फूलों से भर गया
जो डर गया उसे ये समंदर निगल गया
साहिल मिला उसे जो भंवर में उतर गया
वो बेवफ़ा नहीं था हर इल्ज़ाम झूठ था
पर आबरू रखे था ग़ैरत से मर गया
ताले लगा रहे थे देखकर सभी मुझे
कुण्डी खुली मिली थी जब अपने घर गया
तिरछी हुई नज़र तो एक तीर सा लगा
ऐसा चला नज़र से जिगर में उतर गया
इस मनचली पवन का ऐतबार क्यूं करें
जब-जब किया भरोसा आशियां बिखर गया
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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