बज़्म में कुछ ही निराले होते हैं शक्ल से जिनकी उजाले होते हैं कारवाओं को दिखाते वो मंज़िल लोग जो घर से निकाले होते हैं तेग गर्दन पे हमारे होती है और हाथों में निवाले होते हैं यार ऐसे भी सर फिरे देखे है रोज तूफां के हवाले होते हैं दो ज़बानें जो रक्खा करते हैं वो आसती में सांप पाले होते हैं | – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बज़्म में कुछ ही निराले होते हैं
बज़्म में कुछ ही निराले होते हैं
शक्ल से जिनकी उजाले होते हैं
कारवाओं को दिखाते वो मंज़िल
लोग जो घर से निकाले होते हैं
तेग गर्दन पे हमारे होती है
और हाथों में निवाले होते हैं
यार ऐसे भी सर फिरे देखे है
रोज तूफां के हवाले होते हैं
दो ज़बानें जो रक्खा करते हैं वो
आसती में सांप पाले होते हैं |
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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