निकल कर दिल से मेरे आप खता पाओगे घर जो ठुकराया तो बाहर न जगाह पाओगे हम तो सह लेगे सभी नाज़ो अन्दाज़ तेरे ग़ैर के साथ न इक रात बिता पाओगे घर की घर में ही रहे बात जहां तक अच्छा बात निकलेगी तो किस किस छुपा पाओगे रात कट जाए ना यूं बातों बातों में कहीं सुबह फिर ख्वाब कोई कैसे सुना पाओगे ये उजाले के सगे रोशनी के हैं आशिक तुम अंधेरों में इन्हें खुद से जुदा पाओगे बेवफ़ाओं के नहीं होता “इक़बाल” जिगर पा के पत्थर के सनम खाक वफ़ा पाओगे – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
निकल कर दिल से
निकल कर दिल से मेरे आप खता पाओगे
घर जो ठुकराया तो बाहर न जगाह पाओगे
हम तो सह लेगे सभी नाज़ो अन्दाज़ तेरे
ग़ैर के साथ न इक रात बिता पाओगे
घर की घर में ही रहे बात जहां तक अच्छा
बात निकलेगी तो किस किस छुपा पाओगे
रात कट जाए ना यूं बातों बातों में कहीं
सुबह फिर ख्वाब कोई कैसे सुना पाओगे
ये उजाले के सगे रोशनी के हैं आशिक
तुम अंधेरों में इन्हें खुद से जुदा पाओगे
बेवफ़ाओं के नहीं होता “इक़बाल” जिगर
पा के पत्थर के सनम खाक वफ़ा पाओगे
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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