बदलते समय के साथ
तुम्हें भी बदलना होगा
तोड़ने होंगे
अपने मन के
सदियों से बन्द दम घोटते
उन रिवाज़ों के दरवाज़े
और रोशनदान
लेनी होगी
तुम्हें खुल के सांस
गाने होंगे मन के गीत
उड़ाने होंगे
अपने डर के परिंदे
यह आकाश
यह ज़मीन
यह दुनिया
सब तुम्हारे हैं
सब-कुछ तुम्हारा
तुम रचती हो इन्हें |
बदलते समय के साथ
बदलते समय के साथ
तुम्हें भी बदलना होगा
तोड़ने होंगे
अपने मन के
सदियों से बन्द दम घोटते
उन रिवाज़ों के दरवाज़े
और रोशनदान
लेनी होगी
तुम्हें खुल के सांस
गाने होंगे मन के गीत
उड़ाने होंगे
अपने डर के परिंदे
यह आकाश
यह ज़मीन
यह दुनिया
सब तुम्हारे हैं
सब-कुछ तुम्हारा
तुम रचती हो इन्हें |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की कविता
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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